Friday, August 29, 2014

Saffron War - Radicalization of Hinduism





This is a chilling documentary on the pogrom of a section of Hindus, lead by Yogi Adityanath of Gorakhpur, to radicalize Hindus in the state of Uttar Pradesh (UP). The land of Buddha, Kabir and Baba Gorakh who preached and practiced compassion and unity, has been turned into a training ground for saffron terrorism while the problems of the basic needs of the common masses is conveniently suppressed. The result -- even the dalits, oppressed by high caste Hindus for many millennia, are buying into the Hindutva agenda while the extremist section of the Muslim community get an excuse for their extremism. The Hindus who believe in this nonsense must be the dumbest people on earth, who despite being in majority, fear a minority community fuelled as they are by opportunists yogis and mahants hungry for power, finding ways and means for violence against them, not realizing how it will hit them back, worse, the entire nation. There is enough evidence in this video to charge cases of sedition and war against the nation against many of these fanatical Hindu religious leaders. It's time the administration, police and the courts of India act against Hindutva terrorism before UP turns to another Gujarat and India is consumed by a civil war. 


The film is directed by Rajeev Yadav, Shahnawaz Alam and Lakshaman Prasad. For inquiries contact them at: +91 9415254919, +91 9452800752

Wednesday, May 7, 2014

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के देवचरा मतदान केन्द्र पर दलित हरी सिंह द्वारा आत्मदाह कर लेने के सन्दर्भ में।

प्रति,         
केन्द्रीय चुनाव आयुक्त
निर्वाचन सदन, लोधी रोड
नई दिल्ली भारत।

विषय- उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के देवचरा मतदान केन्द्र पर दलित हरी सिंह द्वारा आत्मदाह कर लेने के सन्दर्भ में।

महोदय,
गत सत्रह अप्रैल को बरेली जिले के देवचरा नई बस्ती निवासी दलित हरी सिंह को आम चुनाव में मतदान पर्ची न देने, मतदान केन्द्र पर मतदान से रोकने, बूथ कर्मचारियों, स्थानीय थाना प्रभारी, बीएलओ द्वारा मतदान केन्द्र पर बार-बार अपमानित करने के कारण राम भरोसे इंटर कालेज, मतदान केन्द्र पर आत्मदाह कर लेने का मामला सामने आया। हरी सिंह द्वारा मतदान केन्द्र पर आत्मदाह कर लेने के असल कारणों को जानने तथा तथ्यों की पड़ताल के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों के जांच दल ने देवचरा गांव का दौरा किया और पीडि़त परिवार के सदस्यों से मुलाकात की थी।

जांच के दौरान पता चला कि मतदान केन्द्र पर प्रशासन द्वारा जानबूझ कर दलित समुदाय के लोगों को वोट देने से रोकने के लिए एक साजिश के बतौर उनके इलाके में मतदाता पर्ची नहीं बांटी गई, ताकि किसी खास प्रत्याशी को चुनाव में लाभ पहुंचाया जा सके। मृतक हरी सिंह की पत्नी तारावती ने जांच दल को बताया कि हरी सिंह पिछले तीन साल से मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन इलाके के बीएलओ द्वारा जानबूझ कर उनका मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाया जा रहा था। तारावती ने जांच दल को बताया कि वोटर कार्ड बनाने के लिए हरी सिंह से बीएलओ ने चार सौ रुपए लिए थे, तब जाकर हाल ही में उनका मतदाता पहचान पत्र बन सका।

जांच दल को देवचरा नई बस्ती में दलित समुदाय के कई ऐसे लोग मिले, जिन्होंने मतदाता पहचान पत्र न होने की शिकायत की। दलितों के साथ किस तरह वोट देने के दौरान भी अन्याय होता है, इसकी एक बानगी यह है कि हरि सिंह के घर के बगल में रहने वाली एक महिला रेखा ने बताया कि उसे भी मतदाता पर्ची नहीं मिली थी। जब रेखा की जेठानी अपने पति के साथ बिना पर्ची के वोट डालने गईं तो पता चला कि उनका वोट पहले ही डाला जा चुका है। इसी तरह कई ऐसे लोग मिले जिनसे मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए स्थानीय अधिकारियों ने तीन सौ से पांच सौ रुपए तक वसूले थे। जांच दल को देवचरा नई बस्ती के लोगों ने बताया कि उनकी तरह हरी सिंह से भी पैसा लेकर मतदाता पहचान पत्र बनाया था और इस चुनाव में इस मतदाता पहचान पत्र की वैधता को वोट देकर वह जांचना चाहते थे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और वोट देने के हक के लिए हरि सिंह को आत्मदाह तक करना पड़ा।

देवचरा में जांच के दौरान जेयूसीएस को पता चला कि हरि सिंह को अब तक बीपीएल कार्ड भी नहीं मिला था। घटना के तीन दिन बाद जिला प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी से बचने और दोषी प्रशासनिक अधिकारियों को बचाने के लिए बीस अप्रैल को हरी सिंह की पत्नी तारावती के नाम से अन्त्योदय कार्ड जारी किया। आज तक जिला प्रशासन ने इस पीडि़त परिवार को कोई आर्थिक सहायता नहीं प्रदान की।

जांच दल ने पाया कि एक तरफ सरकार सबको वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने के नाम पर लोगों से जहां जरूर मतदान करने की अपील करती है, वहीं बूथ लेवल अफसर दलित समुदाय के लोगों को किसी भी तरह वोट नहीं डालने देने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। प्रशासन के कुछ लोग चाहते हैं कि किसी खास जाति के लोगों की राह चुनाव में आसान बनी रहे और उनका ही दबदबा राजनीति में बना रहे। यह किसी समाज को उसके न्यूनतम लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित रखने और लोकतंत्र को कमजोर करने की एक साजिश है तथा उस व्यक्ति के संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का भी गंभीर हनन है।

दलित समुदाय के लोकतांत्रिक व मानवाधिकार हनन के इस गंभीर मसले पर हम मांग करते हैं कि जिस तरह जिला और पुलिस प्रशासन का पूरा अमला मतदान केंद्र पर मौजूद रहा और हरी सिंह जलता रहा, ऐसे में प्रथम दृष्टया दोषी अधिकारयों को गिरफ्तार कर पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच काराई जाए। पीडि़त परिवार को बीस लाख रुपए मुआवजा तथा उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी व बच्चों की शिक्षा की गारंटी की जाए।

दिनांक- 06.05.2014

द्वारा जारी
राघवेन्द्र प्रताप सिंह, शरद जायसवाल, गुफरान सिद्दीकी, लक्ष्मण प्रसाद, शाह आलम, प्रबुद्ध गौतम, हरे राम मिश्र, अनिल यादव, मोहम्मद आरिफ, वरुण, विजय प्रताप, ऋषि कुमार, अवनीश, फैजान मुसन्ना, जुहैर तुराबी।              

कार्यकारिणी सदस्य जर्नलिस्ट्स यूनियन फाॅर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस)
लखनऊ उत्तर प्रदेश
संपर्क- द्वारा मोहम्मद शुऐब एडवोकेट
110/46 हरि नाथ बनर्जी स्ट्रीट
लाटूश रोड, नया गांव पूर्व
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
मोबाइल- 07379393876, 09454292339

प्रतिलिपि संलग्नक-
1- महामहिम राष्ट्रपति महोदय
2- प्रधानमंत्री, भारत सरकार
3- मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश शासन
4- अध्यक्ष, अनसूचित जाति जन जाति आयोग, नई दिल्ली
5- अध्यक्ष, अनसूचित जाति जन जाति आयोग, लखनऊ
7- अध्यक्ष, राष्ट्रीय मानवाधिकार अयोग, नई दिल्ली
8- अध्यक्ष, राज्य मानवाधिकार आयोग, लखनऊ
9- केन्द्रिय चुनाव आयुक्त, नई दिल्ली
10- राज्य चुनाव आयुक्त, लखनऊ
11- डीजीपी, उत्तर प्रदेश पुलिस, लखनऊ

उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के बजाना (अहिरवार) गांव में 30 अप्रैल 2014 को हुए मतदान के दौरान अस्सी वर्षीय दलित जंगी लाल से दबंगों द्वारा ‘मूर्ति पर हाथ रखवा कर पूछा- किसे दिया वोट? जवाब नहीं देने पर ले ली जान’ के समूचे प्रकरण की न्यायिक जांच, परिवार को पुलिस सुरक्षा व पीडि़त परिवार को 20 लाख मुवाबजा देने के संदर्भ में।

प्रति,         
अध्यक्ष
केन्द्रिय निवार्चन आयोग
लोधी रोड, नई दिल्ली।

विषय- उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के बजाना (अहिरवार) गांव में 30 अप्रैल 2014 को हुए मतदान के दौरान अस्सी वर्षीय दलित जंगी लाल से दबंगों द्वारा ‘मूर्ति पर हाथ रखवा कर पूछा- किसे दिया वोट? जवाब नहीं देने पर ले ली जान’ के समूचे प्रकरण की न्यायिक जांच, परिवार को पुलिस सुरक्षा व पीडि़त परिवार को 20 लाख मुवाबजा देने के संदर्भ में।

महोदय,
हम सब सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार समूह हैं। दिनांक 1 मई 2014 को दैनिक भास्कर के वेब संस्करण पर एक खबर प्रकाशित हुई थी ‘मूर्ति पर हाथ रखवा कर पूछा- किसे दिया वोट? जवाब नहीं देने पर ले ली जान’। इस खबर में लिखा है कि उत्‍तर प्रदेश में झांसी-ललितपुर लोकसभा क्षेत्र के बजाना गांव में 80 साल के बुजुर्ग की हत्‍या केवल इसलिए कर दी गई क्‍योंकि उसने दबंगों को यह नहीं बताया कि वोट किसे दिया है। 30 अप्रैल को दबंगों के वार से घायल जंगी लाल ने 1 मई की देर रात दम तोड़ दिया। उनसे दंबग जानना चाह रहे थे कि उन्‍होंने वोट किसे दिया था। उन्‍हें मंदिर ले जा कर भगवान की मूर्ति छू कर जवाब देने के लिए कहा गया। जवाब नहीं मिलने पर उन पर हमला किया गया था। खबर में लिखा है कि मारे गए बुजुर्ग जंगी लाल के बेटे रमेश ने कहा कि वो लोग पिता को मार चुके हैं। अब उसे भी जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, मामला वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। इस खबर में ‘रमेश ने बताया कि पहले से ही एक पार्टी विशेष को वोट देने के लिए दबाव डाला जा रहा था। बाजना में अधिकतर दलित रहते हैं। उसने बताया कि पूरे गांव के लोगों से कसम खिलवाई जा रही थी। उन पर दबाव बनाया जा रहा था, जो लोग उनकी बात नहीं मान रहे थे, उन्हें बूथ तक पहुंचने ही नहीं दिया गया’। ( http://www.bhaskar.com/article-ht/UP-voting-day-murder-jhansi-crime-news-4600020-PHO.html)

इसी वेब साइट पर ‘कैसे हुई घटना’ उपशीर्षक से प्रकाशित खबर में लिखा है ‘ 30 अप्रैल को 80 साल के जंगी लाल अहिरवार गांव में ही प्राइमरी पाठशाला में बने पोलिंग बूथ से मतदान करके घर लौट रहे थे। रास्ते में उन्‍हें गांव के ही पृथ्वी यादव ने रोका और पूछा कि वोट किसे दिया। जंगी लाल ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। इस बात से गु्स्साए लोग उन्हें जबरन गांव में ही बने एक मंदिर में ले गए। वहां भगवान की मूर्ति पर हाथ रखकर यह बताने के लिए कहा कि किसे वोट दिया। बुजुर्ग ने कसम खाने से मना कर दिया तो, उसके सिर पर लाठी से हमला कर दिया। उन्हें महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां गुरुवार की रात उनकी मौत हो गई’। (http://www.bhaskar.com/article-ht/UP-voting-day-murder-jhansi-crime-news-4600020-PHO.html?seq=2)

दलित समुदाय को वोट डालने से रोकने संबन्धी कुछ और भी समाचार इस वेब साइट पर हैं जो यह बताते है कि दलित समुदाय को वोट से वंचित करने की अन्य स्थानों पर भी कोशिश की गई। जिसका वेब लिंक निम्न है- http://www.bhaskar.com/article-ht/UP-voting-day-murder-jhansi-crime-news-4600020-PHO.html?seq=3

उपरोक्त समाचार यह दर्शाते हैं कि इस मुल्क में आज भी आम दलित अपनी मर्जी से कहीं वोट नहीं दे सकते, अपना मुखिया नहीं चुन सकते। जिस तरह इस पूरे प्रकरण में दलित समुदाय के जंगी लाल को मंदिर में मूर्ति पर हाथ रखवाकर पूछा गया और उसके बाद उन पर जानलेवा हमलाकर उनकी हत्या की गई यह घटना हमारे समाज में व्याप्त अंधविश्वास और रुढि़वाद को भी उजागर करती है, जिसमें धर्म को हथियार बनाकर एक दलित समुदाय के व्यक्ति से उसके जीने के अधिकार को छीन लिया जाता है। इतना ही नहीं पूरे के पूरे दलित कस्बे को वोट देने से रोक दिया जाता है, जिसके तहत वे वोटिंग के समय तक नजरबंद रहते हैं।

हमारा लोकतंत्र प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार मुहैया कराता है। वह किसे अपना वोट देगा यह उसकी मर्जी है। इस बावत पूछताछ, दबाव और धमकी तथा मनचाहे व्यक्ति को वोट न देने पर जान लेवा हमला करना नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है। जिस तरह समाचार बताता है कि पूरे बजाना कस्बे के दलितों को किसी खास पार्टी को ही वोट करने के लिए धमकाया गया था। यह लोकतंत्र के विकास और उसकी सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक संकेत हैं। उपरोक्त खबर इस मुल्क में दलितों के हालात को उजागर करती है और सवाल उठाती है कि जब उनसे उनके वोट देने तक के अधिकारों को छीना जा रहा है तो ऐसे में क्या उनके अन्य अधिकार सुरक्षित हैं?

लोकभा चुनाव के दरम्यान दलित समुदाय के लोकतांत्रिक व मानवाधिकार हनन से जुड़ी इस घटना पर हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इस पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच करवाते हुए, मृतक परिवार को सुरक्षा, परिवार को 20 लाख रुपए मुआवजा सुनिश्चित कराया जाए।

दिनांक-05.05.2014
धन्यवाद,

द्वारा
राघवेन्द्र प्रताप सिंह, शरद जायसवाल, गुफरान सिद्दीकी, लक्ष्मण प्रसाद, शाह आलम, प्रबुद्ध गौतम, हरे राम मिश्र, अनिल यादव, मोहम्मद आरिफ,फैजान मुसन्ना, जुहैर तुराबी, वरुण, ऋषि कुमार,  अवनीश।

कार्यकारिणी सदस्य-
जर्नलिस्ट यूनियन  फाॅर सिविल सोसाइटी
110/46 हरि नाथ बनर्जी स्ट्रीट लाटूश रोड
नया गांव पूर्व, लखनऊ उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर- 07379393876, 09452800752

प्रतिलिपि संलग्नक-
1- महामहिम राष्ट्रपति महोदय
2- प्रधानमंत्री, भारत सरकार
3- मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश शासन
4- अध्यक्ष, अनसूचित जाति जन जाति आयोग, नई दिल्ली
5- अध्यक्ष, अनसूचित जाति जन जाति आयोग, लखनऊ
7- अध्यक्ष, राष्ट्रीय मानवाधिकार अयोग, नई दिल्ली
8- अध्यक्ष, राज्य मानवाधिकार आयोग, लखनऊ
9- केन्द्रिय चुनाव आयुक्त, नई दिल्ली
10- राज्य चुनाव आयुक्त, लखनऊ
11- डीजीपी, उत्तर प्रदेश पुलिस, लखनऊ

Friday, May 2, 2014

दलितों को लोकतंत्र के हाशिए पर रखने का षडयंत्र है हरि सिंह का आत्मदाह

मतदान से रोके गए हरि सिंह के आत्मदाह प्र्रकरण की हो न्यायिक जांच- JUCS
राम भरोसे इंटर कालेज, देवचरा के मतदान केन्द्र पर दोबारा मतदान कराया जाए
















गत सत्रह अप्रैल को बरेली जिले के देवचरा नई बस्ती निवासी दलित हरि सिंह को आम चुनाव में मतदान पर्ची न देने, मतदान केन्द्र पर मतदान से रोकने, बूथ कर्मचारियों, स्थानीय थाना प्रभारी, बीएलओ द्वारा केन्द्र पर बार-बार अपमानित करने के कारण राम भरोसे इंटर कालेज, मतदान केन्द्र पर ही आत्मदाह कर लेने को जेयूसीएस ने लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बताते हुए पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग की है।

हरि सिंह द्वारा मतदान केन्द्र पर आत्मदाह कर लेने के असल कारणों को जानने तथा तथ्यों की पड़ताल के लिए सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकारों के जांच दल ने सोमवार को देवचरा गांव का दौरा किया और पीडि़त परिवार के सदस्यों से मुलाकात की। जर्नलिस्ट्स यूनियन फाॅर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) एवं एपीसीआर के इस जांच दल में शरद जायसवाल, अजीज खान, डाॅ इसरार खां, लक्ष्मण प्रसाद, हरेराम मिश्र और अनिल कुमार यादव शामिल थे।

जांच दल के सदस्यों द्वारा की गई पड़ताल में प्रथम दृष्टया यह बात सामने आई कि मतदान केन्द्र पर प्रशासन द्वारा जानबूझ कर दलित समुदाय के लोगों को वोट देने से रोकने के लिए एक साजिश के बतौर उनके इलाके में मतदाता पर्ची नहीं बांटी गई, ताकि किसी खास प्रत्याशी को चुनाव में लाभ पहुंचाया जा सके।

मृतक हरि सिंह की पत्नी तारावती के मुताबिक, हरि सिंह पिछले तीन साल से मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन इलाके के बीएलओ द्वारा जानबूझ कर उनका मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाया जा रहा था। मृतक की पत्नी तारावती का आरोप है कि वोटर कार्ड बनाने के लिए हरी सिंह से बीएलओ ने चार सौ रुपए लिए थे, तब जाकर हाल ही में उनका मतदाता पहचान पत्र बन सका।













जांच दल को देवचरा नई बस्ती में दलित समुदाय के कई ऐसे लोग मिले, जिन्होंने मतदाता पहचान पत्र न होने की शिकायत की। दलितों के साथ किस तरह वोट देने के दौरान भी अन्याय होता है, इसकी एक बानगी यह है कि हरि सिंह के घर के बगल में रहने वाली एक महिला रेखा ने बताया कि उसे भी मतदाता पर्ची नहीं मिली थी। जब रेखा की जेठानी अपने पति के साथ बिना पर्ची के वोट डालने गईं तो पता चला कि उनका वोट कोई पहले ही डाला जा चुका है।

इसी तरह कई ऐसे लोग मिले जिनसे मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए स्थानीय अधिकारियों ने तीन सौ से पांच सौ रुपए तक वसूले थे। जांच दल को देवचरा नई बस्ती के लोगों ने बताया कि उनकी तरह हरी सिंह से भी पैसा लेकर मतदाता पहचान पत्र बनाया था और इस चुनाव में इस मतदाता पहचान पत्र की वैधता को वोट देकर वह जांचना चाहते थे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और वोट देने के हक के लिए हरि सिंह को आत्मदाह तक करना पड़ा।

पड़ताल के दौरान जांच दल को पता चला कि हरि सिंह को अब तक बीपीएल कार्ड भी नहीं मिला था। घटना के तीन दिन बाद जिला प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी से बचने और दोषी प्रशासनिक अधिकारियों को बचाने के लिए बीस अप्रैल को हरि सिंह की पत्नी तारावती के नाम से अन्त्योदय कार्ड जारी किया। आज तक जिला प्रशासन ने इस पीडि़त परिवार को कोई आर्थिक सहायता नहीं प्रदान की।













जांच दल ने पाया कि एक तरफ सरकार सबको वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने के नाम पर लोगों से जहां जरूर मतदान करने की अपील करती है, वहीं बूथ लेवल अफसर दलित समुदाय के लोगों को किसी भी तरह वोट नहीं डालने देने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। यह एक जातिवादी और गैर लोकतांत्रिक मानसिकता है, जो लोकतंत्र को कमजोर करती है। प्रशासन के कुछ लोग चाहते हैं कि किसी खास जाति के लोगों की राह चुनाव में आसान बनी रहे और उनका ही दबदबा राजनीति में बना रहे।

जांच दल ने कहा कि 16 वीं लोकसभा के चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग न कर पाने की वजह से हरि सिंह का आत्मदाह करना यह साबित करता है कि चुनाव आयोग सिर्फ अमीर और मध्यवर्गीय तबकों के लिए ही चुनाव बूथ तक पहुंचने का रास्ता सुगम बनाने के लिए अरबों रुपए प्रचार में फूंक रहा है और उसके अधीन काम करने वाले कर्मचारी दलित बस्तियों में मतदात पत्र बनाने के लिए पैसों की उगाही कर रहे हैं।

जांच दल ने मांग की कि जिस तरह जिला और पुलिस प्रशासन का पूरा अमला मतदान केंद्र पर मौजूद रहा और हरि सिंह जलता रहा ऐसे में प्रथम दृष्टया दोषी अधिकारयों को गिरफ्तार कर पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच काराई जाए और राम भरोसे इंटर कालेज, देवचरा के मतदान केन्द्र पर दोबारा मतदान कराया जाए। जांच दल ने प्रदेश सरकार से मांग की कि पीडि़त परिवार को बीस लाख रुपए मुआवजा तथा उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी व बच्चों की शिक्षा की गारंटी की जाए।

Tuesday, April 29, 2014

दलितों को लोकतंत्र के हाशिए पर रखने का षडयंत्र है हरि सिंह का आत्मदाह

मतदान से रोके गए हरि सिंह के आत्मदाह प्र्रकरण की हो न्यायिक जांच- JUCS
राम भरोसे इंटर कालेज, देवचरा, बरेली के मतदान केन्द्र पर दोबारा मतदान कराया जाए






Election2014 Dalit Harisingh who burnt himself after denied right to vot...

#Elections2014 Dalit Harisingh who burnt himself dead, after denied right to vote, bareilly UP.#JUCS speaks to family members
http://jucsindia.blogspot.in/ https://www.youtube.com/watch?v=a7cu6kT-laQ&feature=youtu.be

Dalit Harisingh who burnt himself, after denied right to vote, bareilly ...



#Elections2014 Dalit Harisingh who burnt himself dead, after denied right to vote, bareilly UP.#JUCS speaks to family members
http://jucsindia.blogspot.in/
https://www.youtube.com/watch?v=nn7EXhR_soM&feature=youtu.be

Friday, May 11, 2012

आदिवासी गरीब नहीं- बीडी शर्मा

नई दिल्ली, 11 मई, 2012


इस समय हर तरह की ताकतें देश के कोने-कोने पर कब्जा कर रही हैं। जल, जंगल और जमीन पर कार्पोरेट का एकाधिकार हो रहा है और आदिवासी समुदाय को ढकेला जा रहा है। मैं व्यवस्था के कर्णधारों से पूछना चाहता हूं कि आदिवासी कब से करीब हो गया। उनके पास तो सब कुछ है।मैं प्रधानमंत्री से अपील करूंगा कि वे उन्हें गरीब मानकर बात न करें।

ये बातें शुक्रवार को प्रो. बीडी शर्मा ने कहीं। वह गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में युवा संवाद और जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) द्वारा आयोजित बातचीत आदिवासी समाज और हमारी जिम्मेदारियां विषय पर बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि 26 नवंबर, 1946 का दिन आदिवासियों के लिए काला दिन है क्योंकि इसी दिन देश ने संविधान को स्वीकार किया था। इसमें आदिवासियों के अधिकारों के संदर्भ में भारी विसंगति थी। इसके बावजूद राज्यपाल या स्वयं राष्ट्रपति द्वारा आदिवासी इलाकों की परंपरागत व्यवस्था को औपचारिक मान्यता प्रदान करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। प्रो. शर्मा ने यह भी कहा कि

जब फौज और समाज में युद्ध होता है तो अंततः समाज ही जीतता है। हिटलर ने भी जब सोवियत रूस की तरफ हमला किया तो उसे हार का मुंह देखना पड़ा।

गांधी जी के ग्राम गणराज्य की सोच के बारे में चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि जिस आदिवासी समाज में महुए के रस को गंगाजल के रूप में देखा जाता है और नवजात के मुंह में सबसे पहले महुए का रस डाला जाता है, वर्तमान कानून में इस परंपरा को अपराध घोषित कर दिया गया है। दूसरी तरफ सरकार अंतर्राष्ट्रीय साजिश के तहत शराब की बिक्री कर रही है जो चाइना के ओपियम वार की तरह है। अगर इसपर नियंत्रण नहीं लगाया तो पूरा आदिवासी समाज इसमें डूब जाएगा। आदिवासी इलाकों के मामले में सीधा सवाल है कि धरती हमारी है पानी हमारा है हवा हमारी है ऐसे में कुछ नोटों की गड्डी की ताकत पर उद्योगों की स्थापना नहीं किया जा सकता। राज्य को आदिवासी इलाकों में एमओयू पर हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं है।कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया स्टडीज ग्रुप के अध्यक्ष अनिल चमड़िया ने कहा कि सरकार आंकड़ों में हेर-फेर करके देश में नक्सल प्रभावित इलाकों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है ताकि आदिवासी इलाकों की प्राकृतिक संपदा का दोहन करने के लिए हथियारबंद सुरक्षा बलों का सहारा लिया जा सके।

इस दौरान युवा संवाद के एके अरुण, किसान नेता डॉ सुनीलम् समेत कई वक्ताओं ने अपने विचार व्यवक्त किए। कार्यक्रम का संचालन विजय प्रताप ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन जेयूसीएस के अवनीश ने किया।



द्वारा जारी

युवा संवाद एवं जेयूसीएस

संपर्क- 8010319761


Friday, May 4, 2012

1st Kargil Film Festival Awam Ka Cinema 19-20 May 2012

पहला करगिल फिल्म उत्सव 19 मई से शुरु 15 मई तक फिल्में भेजें,
ज्यापदा जानकारी के लिए देखें www.kargilfilmfestival.tk
अवाम का सिनेमा की तरफ से पहले करगिल फिल्म उत्सव का आयोजन 19-20 मई 2012
को हो रहा है| बात जब बेहतर सिनेमा की हो जिसे बाजार नहीं बल्कि सिर्फ
सरोकारों को ध्यान में रखकर बनाया गया हो, तो ऐसे सिनेमा को उसके कम और
बिखरे ही सही दीवानों तक पहुंचाने के लिए स्वाभाविक तौर पर थोड़ी ज्यादा
मशक्कत करनी पड़ती है| इसलिए करगिल में फिल्म
उत्सव की मशक्कत पिछले तीन साल से की जा रही थी| लद्दाख क्षेत्र के
इतिहास में पहली बार किसी फिल्म मेले का आयोजन किया जा रहा है। अवाम का
सिनेमा में कुछ हमख्याल दोस्त ही इसके सहयोगी और प्रायोजक हैं।
 फिल्मग उत्सकव में कुछ चुनिंदा बेहतरीन फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा।
निश्चित ही लद्दाख के फिल्म प्रेमियों के लिए यह उत्सव एक सौगात से कम
नहीं है तथा साथ ही राज्य से बाहर स्थित अच्छे सिनेमा के शौकीनों के लिए
फिल्मों के साथ-साथ करगिल के खूबसूरत और सौहार्दपूर्ण माहौल का मुज़ाहिरा
करने का एक बढ़िया मौका भी।"अवाम का सिनेमा" ने 2006 में अयोध्या से छोटे
स्तर पर ही सही, एक सांस्कृतिक लहर पैदा करने की कोशिश की थी। मकसद था कि
फिल्मों के जरिए देश-समाज को समझने के साथ-साथ विभिन्न कला माध्यमों के
जरिए आमजन के बीच बेहतर संवाद बने, उनके सुख-दुःख में शामिल होने के
रास्ते खुलें और कुछ वैसी खोई विरासत से रूबरू होने का मौका मिले, जहां
इंसानियत के लिए बेहिसाब जगह है।
    "अवाम का सिनेमा" ने इस ओर कदम बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और
फिल्में बनाने से लेकर लोगों के खुद सिनेमा बनाने की जमीन तैयार करने की
दिशा में हर शुभचिंतक का सहयोग लेने की कोशिश की है जिससे आपसी सौहार्द
की ओर बढ़ने का रास्ता आसान हो सके। इस अभियान के तहत अयोध्या, मऊ,
जयपुर, औरैया, इटावा, दिल्ली और कश्मीर सहित कई जगहों पर फिल्म उत्सव का
आयोजन किया गया। इसी कड़ी में पहला करगिल फिल्म उत्सव भी है।जिस दौर में
हमारे लोकतंत्र को जीवन देने वाली संसद और विधानसभाओं से लेकर मीडिया तक
के सारे पायदान अपने सरोकारों की सरमाएदारी पर उतर चुके हैं, उसमें
जनता की सांस्कृतिक गोलबंदी ही एक ऐसा रास्ता है जो इन संस्थाओं को उनकी
जिम्मेदारी का अहसास करा सकता है और उसे पूरा करने पर मजबूर कर सकता
है।इसके लिए सबसे जरूरी पहल यह होगी कि जनसरोकारों के प्रति लोगों के बीच
संवाद कायम किया जाए। "अवाम का सिनेमा" इसी दिशा में एक कोशिश है। यह
आयोजन बगैर किसी प्रायोजक के अब तक चलता आया है और आगे भी ऐसे ही जारी
रहेगा। एक बार फिर हम आपको इसमें आमंत्रित करते हैं। हमें उम्मीद है कि
जनसरोकारों  का दायरा और व्यापक बनाने की कोशिशों में हमें आपकी मदद जरूर
मिलेगी।

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AWAM KA CINEMA
DIRECTORATE OF FILM FESTIVALS
320 SARYU KUNJ DURAHI KUWA,
AYODHYA-224123, UP, INDIA.

E Mail - awamkacinema@gmail.com
+91 9873672153
www.awamkacinema.org

KARGIL FILM FESTIVAL-AWAM KA CINEMA
KARGIL FILM SOCIETY
Kargil, Laddakh, India.
E Mail - kargilfilmfestival@gmail.com
+91 9419728518

www.kargilfilmfestival.tk





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AWAM KA CINEMA
DIRECTORATE OF FILM FESTIVALS
320 SARYU KUNJ DURAHI KUWA,
AYODHYA-224123, UP, INDIA.

E Mail - awamkacinema@gmail.com
+91 9873672153
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Sunday, April 1, 2012

‘दूरदर्शन उर्दू’ चैनल का सच


दूरदर्शन का डीडी उर्दूचैनल स्थापना के बाद पांच वर्षों में अपना कोई ढांचा तैयार नहीं कर पाया है। मीडिया स्टडीज ग्रुप के एक सर्वे से पता चला है कि देश भर के 80 दूरदर्शन केंद्रों में डीडी उर्दूके लिए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई है। इसके अलावा दूरदर्शन के दिल्ली केंद्र में उर्दू चैनल के लिए केवल 6 स्थायी कर्मचारी हैं, उनमें भी चार पद प्रशासनिक हैं। देश भर में दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता, पटना और अहमदाबाद के अलावा दूरदर्शन के 80 केंद्रों से उर्दू चैनल के लिए नियुक्त कर्मचारियों के बाबत सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी गई थी। यह सर्वे मासिक शोध जर्नल जन मीडिया’ (हिंदी) और मास मीडिया’ (अंग्रेजी) ने प्रकाशित किया है, जिसका पहला अंक 2 अप्रैल को जारी किया जाएगा।
मीडिया शोध से जुड़ी संस्था मीडिया स्टडीज ग्रुप ने डीडी उर्दू के उद्देश्यों और उसके अनुपात में मानव संसाधनपर अपने इस सर्वे में पाया कि विशेश भाषाई दर्शक समुदाय के लिए शुरू किए गए इस चैनल के लिए कर्मचारियों की कोई स्थायी नियुक्ति नहीं की गई है। ग्रुप की ओर से शोधकर्ता अवनीश ने देश भर के 87 दूरदर्षन केंद्रों में सूचना अधिकार (आरटीआई) से यह जानकारी प्राप्त की है। आरटीआई से मिली सूचना के अनुसार 80 दूरदर्शन केंद्र, जहां से डीडी उर्दूका प्रसारण होता है, वहां पर इसके लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है, ना ही कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। इन केद्रों पर दूरदर्शन के लिए काम करने वाले कर्मचारी ही डीडी उर्दूका भी काम करते हैं। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू के लिए 6 स्थायी अधिकारी नियुक्त हैं। इन पदों में एक उप महानिदेशक, एक अनुभाग अधिकारी, एक प्रोग्राम प्रोड्यूसर, एक प्रोड्यूसर, एक एडीपी और एक एडीजी हैं। इसके अलावा दूरदर्शन भवन के डीडी उर्दू अनुभाग में 18 कर्मचारी नियुक्त हैं, जो कि सभी अस्थायी हैं। क्षेत्रीय प्रसारण केंद्रों में नियुक्तियां अस्थायी और आकस्मिक हैं।
दूरदर्शन के लखनऊ केंद्र में डीडी उर्दू के कार्यक्रम बनाने वाले पैनल में 11, हैदराबाद में 29, कोलकाता में 21 और पटना में 6 कर्मचारी हैं। ये सभी अस्थाई या कैजुअल आधार पर काम करते हैं। अहमदाबाद में उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनप्रसारित होता है, जो दूरदर्शन केंद्र के एक कर्मचारी ईशू देसाई बनाते हैं।
डीडी उर्दू की स्थापना 15 अगस्त 2006 को हुई। एक चैनल के रूप डीडी उर्दू ने 14 नवंबर 2007 से 24 घंटे का प्रसारण शुरू किया। चैनल का उद्देश्य अपने दर्शकों को विरासत, संस्कृति, सूचना, शिक्षा और सामाजिक मुद्दों पर कार्यक्रम मुहैया कराना है। चैनल की स्थापना के समय यह दावा किया गया था कि इससे धीरे-धीरे भुलाई जा रही इस भाषा को फिर से लोकप्रिय करने में मदद मिलेगी। स्थापना के बाद से ये चैनल अभी तक कार्यक्रम निर्माण के लिए अपना ढांचा विकसित नहीं कर सका है। कर्मचारी की नियुक्ति नहीं किये जाने की वजह से इस चैनल को कार्यक्रमों के निर्माण के लिए बाहरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। डीडी उर्दू से प्रसारित होने वाली खबरें भी दूरदर्शन से ही ली जाती हैं। उर्दू कार्यक्रमों के लिए किसी नीति का नहीं होना वास्तव में एक ठोस संचार नीति की कमी से जुड़ा है।
चैबीस घंटे का यह चैनल ठोस नीति के अभाव में अपने उद्देश्यों को पूरा कर नहीं कर पा रहा है। मीडिया स्टडीज ग्रुप पहले भी मीडिया से जुड़े मुद्दों पर शोध और सर्वे करता रहा है। इस ग्रुप का मीडिया में काम करने वालों लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन खासा महत्व रहा है।
शोध जर्नल जन मीडियाऔर मास मीडियाका नवान्न (विमोचन) सुप्रीम कोर्ट के चर्चित अधिवक्ता प्रषांत भूशण 2 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कालेज में करेंगे। इस मौके पर मीडिया पर शोध की आवश्यकताविषय परिचर्चा भी आयोजित की गई है।

डीडी उर्दू चैनल में कर्मचारियों की स्थिति का ब्यौरा
देशभर के 87 दूरदर्शन केंद्रों ने सूचना उपलब्ध कराई। इन सूचनाओं का विवरण यहां दिया जा रहा है।

1. दिल्ली - प्रसार भारती के कोपरनिकस मार्ग स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू अनुभाग में कार्यरत कर्मचारियों की सूची
उप महानिदेशक (स्थाई)    1
अनुभाग अधिकारी (स्थाई)   1
प्रोग्राम प्रोड्यूसर (स्थाई)    1
सेवानिवृत्त डीडीपी (अस्थाई)  1
प्रोड्यूसर (स्थाई)          1
एडीपी (स्थाई)       1
एडीजी (स्थाई)            1
वीटी एडीटर (अस्थाई)      1
बीई- प्रथम(अस्थाई)  6
बीई- द्वितीय(अस्थाई) 7
अभिलेखीय सहायक (अस्थाई) 3
पुस्तकालय सहायक (अस्थाई)      1
2. दिल्ली - स्थित आकाशवाणी में उर्दू कार्यक्रमों के लिए नियुक्त कर्मचारियों की सूची
कार्यक्रम अधिकारी         1
प्रसारण अधिकारी (ठेके पर) 1
अवर श्रेणी लिपिक         1
3. दूरदर्शन केंद्र लखनऊ - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल
न्यूज राइटर (आकस्मिक)       5
उर्दू टाइपिस्ट (आकस्मिक)   6
4. दूरदर्शन केंद्र हैदराबाद - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल (उर्दू के लिए कोई विशेष स्टाफ नहीं है)
प्रोगाम प्रोड्यूसर (अस्थाई)   3
न्यूज रीडर (अस्थाई) 13
अनुवादक (अस्थाई)        6
कैलीग्राफर/कंप्यूटर आपरेटर
(अस्थाई)                 7
5. दूरदर्शन केंद्र कोलकाता - सभी कर्मचारी अस्थाई एवं अनौपचारिक आधार पर
प्रोडक्शन असिस्टेंट (अस्थाई) 3
संपादकीय सहायक (अस्थाई) 3
कैलीग्राफर(अस्थाई)        3
ग्राफिक डिजाइनर (अस्थाई) 5
न्यूज रीडर (अस्थाई) 7
6. दूरदर्शन केंद्र पटना- सभी अस्थाई ठेके पर
उर्दू संपादकीय सहयोगी (आकस्मिक)      2
उर्दू कॉपी राइटर (आकस्मिक)      2
उर्दू प्रस्तुति सहायक (आकस्मिक)   1
उर्दू ग्राफिक डिजाइनर (आकस्मिक) 1
7. दूरदर्शन केंद्र अहमदाबाद- उर्दू चैनल के लिए अलग से कोई नियुक्ति नहीं है। उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनयहां से प्रसारित होता है, जो केंद्र के ही एक कर्मचारी इशू देसाई बनाते हैं। इसके अलावा दूरदर्शन के अन्य 80 केंद्रों से जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार उन केद्रों पर उर्दू चैनल के लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है और न ही उर्दू चैनल के लिए कोई नियुक्ति की गई है। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कोई कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था भी नहीं है।

‘दूरदर्शन उर्दू’ चैनल का सच


दूरदर्शन का डीडी उर्दूचैनल स्थापना के बाद पांच वर्षों में अपना कोई ढांचा तैयार नहीं कर पाया है। मीडिया स्टडीज ग्रुप के एक सर्वे से पता चला है कि देश भर के 80 दूरदर्शन केंद्रों में डीडी उर्दूके लिए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई है। इसके अलावा दूरदर्शन के दिल्ली केंद्र में उर्दू चैनल के लिए केवल 6 स्थायी कर्मचारी हैं, उनमें भी चार पद प्रशासनिक हैं। देश भर में दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता, पटना और अहमदाबाद के अलावा दूरदर्शन के 80 केंद्रों से उर्दू चैनल के लिए नियुक्त कर्मचारियों के बाबत सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी गई थी। यह सर्वे मासिक शोध जर्नल जन मीडिया’ (हिंदी) और मास मीडिया’ (अंग्रेजी) ने प्रकाशित किया है, जिसका पहला अंक 2 अप्रैल को जारी किया जाएगा।
मीडिया शोध से जुड़ी संस्था मीडिया स्टडीज ग्रुप ने डीडी उर्दू के उद्देश्यों और उसके अनुपात में मानव संसाधनपर अपने इस सर्वे में पाया कि विशेश भाषाई दर्शक समुदाय के लिए शुरू किए गए इस चैनल के लिए कर्मचारियों की कोई स्थायी नियुक्ति नहीं की गई है। ग्रुप की ओर से शोधकर्ता अवनीश ने देश भर के 87 दूरदर्षन केंद्रों में सूचना अधिकार (आरटीआई) से यह जानकारी प्राप्त की है। आरटीआई से मिली सूचना के अनुसार 80 दूरदर्शन केंद्र, जहां से डीडी उर्दूका प्रसारण होता है, वहां पर इसके लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है, ना ही कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। इन केद्रों पर दूरदर्शन के लिए काम करने वाले कर्मचारी ही डीडी उर्दूका भी काम करते हैं। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू के लिए 6 स्थायी अधिकारी नियुक्त हैं। इन पदों में एक उप महानिदेशक, एक अनुभाग अधिकारी, एक प्रोग्राम प्रोड्यूसर, एक प्रोड्यूसर, एक एडीपी और एक एडीजी हैं। इसके अलावा दूरदर्शन भवन के डीडी उर्दू अनुभाग में 18 कर्मचारी नियुक्त हैं, जो कि सभी अस्थायी हैं। क्षेत्रीय प्रसारण केंद्रों में नियुक्तियां अस्थायी और आकस्मिक हैं।
दूरदर्शन के लखनऊ केंद्र में डीडी उर्दू के कार्यक्रम बनाने वाले पैनल में 11, हैदराबाद में 29, कोलकाता में 21 और पटना में 6 कर्मचारी हैं। ये सभी अस्थाई या कैजुअल आधार पर काम करते हैं। अहमदाबाद में उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनप्रसारित होता है, जो दूरदर्शन केंद्र के एक कर्मचारी ईशू देसाई बनाते हैं।
डीडी उर्दू की स्थापना 15 अगस्त 2006 को हुई। एक चैनल के रूप डीडी उर्दू ने 14 नवंबर 2007 से 24 घंटे का प्रसारण शुरू किया। चैनल का उद्देश्य अपने दर्शकों को विरासत, संस्कृति, सूचना, शिक्षा और सामाजिक मुद्दों पर कार्यक्रम मुहैया कराना है। चैनल की स्थापना के समय यह दावा किया गया था कि इससे धीरे-धीरे भुलाई जा रही इस भाषा को फिर से लोकप्रिय करने में मदद मिलेगी। स्थापना के बाद से ये चैनल अभी तक कार्यक्रम निर्माण के लिए अपना ढांचा विकसित नहीं कर सका है। कर्मचारी की नियुक्ति नहीं किये जाने की वजह से इस चैनल को कार्यक्रमों के निर्माण के लिए बाहरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। डीडी उर्दू से प्रसारित होने वाली खबरें भी दूरदर्शन से ही ली जाती हैं। उर्दू कार्यक्रमों के लिए किसी नीति का नहीं होना वास्तव में एक ठोस संचार नीति की कमी से जुड़ा है।
चैबीस घंटे का यह चैनल ठोस नीति के अभाव में अपने उद्देश्यों को पूरा कर नहीं कर पा रहा है। मीडिया स्टडीज ग्रुप पहले भी मीडिया से जुड़े मुद्दों पर शोध और सर्वे करता रहा है। इस ग्रुप का मीडिया में काम करने वालों लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन खासा महत्व रहा है।
शोध जर्नल जन मीडियाऔर मास मीडियाका नवान्न (विमोचन) सुप्रीम कोर्ट के चर्चित अधिवक्ता प्रषांत भूशण 2 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कालेज में करेंगे। इस मौके पर मीडिया पर शोध की आवश्यकताविषय परिचर्चा भी आयोजित की गई है।

डीडी उर्दू चैनल में कर्मचारियों की स्थिति का ब्यौरा
देशभर के 87 दूरदर्शन केंद्रों ने सूचना उपलब्ध कराई। इन सूचनाओं का विवरण यहां दिया जा रहा है।

1. दिल्ली - प्रसार भारती के कोपरनिकस मार्ग स्थित दूरदर्शन भवन में डीडी उर्दू अनुभाग में कार्यरत कर्मचारियों की सूची
उप महानिदेशक (स्थाई)   1
अनुभाग अधिकारी (स्थाई) 1
प्रोग्राम प्रोड्यूसर (स्थाई)   1
सेवानिवृत्त डीडीपी (अस्थाई) 1
प्रोड्यूसर (स्थाई)         1
एडीपी (स्थाई)      1
एडीजी (स्थाई)      1
वीटी एडीटर (अस्थाई)    1
बीई- प्रथम(अस्थाई)  6
बीई- द्वितीय(अस्थाई) 7
अभिलेखीय सहायक (अस्थाई) 3
पुस्तकालय सहायक (अस्थाई)   1
2. दिल्ली - स्थित आकाशवाणी में उर्दू कार्यक्रमों के लिए नियुक्त कर्मचारियों की सूची
कार्यक्रम अधिकारी        1
प्रसारण अधिकारी (ठेके पर)    1
अवर श्रेणी लिपिक        1
3. दूरदर्शन केंद्र लखनऊ - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल
न्यूज राइटर (आकस्मिक)      5
उर्दू टाइपिस्ट (आकस्मिक) 6
4. दूरदर्शन केंद्र हैदराबाद - उर्दू में प्रसारण के लिए पैनल (उर्दू के लिए कोई विशेष स्टाफ नहीं है)
प्रोगाम प्रोड्यूसर (अस्थाई) 3
न्यूज रीडर (अस्थाई) 13
अनुवादक (अस्थाई)       6
कैलीग्राफर/कंप्यूटर आपरेटर
(अस्थाई)           7
5. दूरदर्शन केंद्र कोलकाता - सभी कर्मचारी अस्थाई एवं अनौपचारिक आधार पर
प्रोडक्शन असिस्टेंट (अस्थाई)    3
संपादकीय सहायक (अस्थाई)    3
कैलीग्राफर(अस्थाई)       3
ग्राफिक डिजाइनर (अस्थाई) 5
न्यूज रीडर (अस्थाई) 7
6. दूरदर्शन केंद्र पटना- सभी अस्थाई ठेके पर
उर्दू संपादकीय सहयोगी (आकस्मिक)  2
उर्दू कॉपी राइटर (आकस्मिक)   2
उर्दू प्रस्तुति सहायक (आकस्मिक) 1
उर्दू ग्राफिक डिजाइनर (आकस्मिक)   1
7. दूरदर्शन केंद्र अहमदाबाद- उर्दू चैनल के लिए अलग से कोई नियुक्ति नहीं है। उर्दू का एक कार्यक्रम अंजुमनयहां से प्रसारित होता है, जो केंद्र के ही एक कर्मचारी इशू देसाई बनाते हैं। इसके अलावा दूरदर्शन के अन्य 80 केंद्रों से जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार उन केद्रों पर उर्दू चैनल के लिए न तो कोई पद सृजित किया गया है और न ही उर्दू चैनल के लिए कोई नियुक्ति की गई है। इन केंद्रों पर उर्दू चैनल के लिए कोई कार्यक्रम बनाने की व्यवस्था भी नहीं है।